अवधेश नौटियाल

देहरादून । मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के 100 दिन हनीमून पीरियड रहे हैं। वक्त की नजाकत और मतदाताओं के मूड को भांपते हुए हाईकमान ने उन्हें 6 महीने के इंतजार करने की बजाए जल्द उपचुनाव लड़ने की सीख दी। नतीजा अच्छा रहा। 94 प्रतिशत मत उन्हें मिल गये। यानी कांग्रेस को करारी हार मिली। 100 दिन की अवधि में उन्होंने जनता से 100 वादे किये हैं। इनमें प्रदेश में समान नागरिक संहिता, भ्रष्टाचार पर प्रहार, बेरोजगारी दूर करना, ग्रामीण क्षे़त्रों में रोजगार सृजित करना और चार साल बाद फौज से बाहर आने वाले अग्निवीरों को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार देना आदि ढेरो वादे हैं।

सीएम धामी की नीयत और सोच भले ही अच्छी हो, लेकिन उनकी डगर अग्निपथ पर चलने जैसी है। उनके लिए विकास कार्यों को धरातल पर उतारने के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी ही कैबिनेट से है। कैबिनेट के मंत्रियों को नौकरशाहों से अक्सर हितों का टकराव होता है। हाल में रेखा आर्य और सचिन कुर्वे विवाद शामिल है। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी नौकरशाहों की लगाम अपने हाथों में रखना चाहते हैं लेकिन नौकरशाहों की एक बड़ी लॉबी इसके खिलाफ है। सीएम धामी को मंत्री-अफसरों के बीच बेहतर तालमेल बनाने की चुनौती है।

मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द नौकरशाहों के परिजनों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। मामला अदालत तक है। ऐसे में भ्रष्टाचार पर सीधे चोट करना सीएम के लिए मुश्किल होगा जब तक कि वह दागी नौकरशाहों को साइडलाइन नहीं करते। एक आईएएस यादव को जेल हो गयी। कई अन्य नौकरशाहों पर भी उंगलियां उठ रही हैं। विकास कार्यों में कमीशनखोरी 40 प्रतिशत से भी अधिक हो गयी है। ऐसे में विकास कार्यों की गुणवत्ता का सवाल भी है।

देश के नामी बुद्धिजीवियों ने प्रदेश सरकार के धर्म की नीति पर भी सवाल उठाकर उन्हें पत्र लिखा है। यानी प्रदेश में साम्प्रदायिक सदभाव बनाने की चुनौती भी सीएम धामी के लिए है। डेमोग्राफिक चेंज को संतुलन बनाना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। किसानो की आय दुगनी करने, स्वास्थ्य सेवाओं को दुरस्त करने और नई शिक्षा नीति को लागू करने आदि कई चुनौतियां सीएम धामी के लिए अग्निपथ पर चलने के समान हैं। कुल मिलाकर सीएम धामी के सिर पर कांटों का ताज है और पैरों के नीचे अंगारे।

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